Daily Satsang

प्यारी तेरौ बदन अमृत की पंक, तामैं बींधे नैन द्वै।

प्यारी तेरौ बदन अमृत की पंक, तामैं बींधे नैन द्वै।

प्यारी तेरौ बदन अमृत की पंक, तामैं बींधे नैन द्वै। चित चल्यौ काढ़न कौं, बिकुच संधि संपुट में रह्यौ भ्वै॥ बहुत उपाइ आहि री प्यारी, पै न करत स्वै। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी ऐसैं ही रह्यौ ह्वै॥7॥ ....

प्यारी जू जैसैं तेरी आँखिन में हौं अपनपौ-देखत हौं, ऐसैं तुम देखति हौ किधौं नाहीं?

प्यारी जू जैसैं तेरी आँखिन में हौं अपनपौ-देखत हौं, ऐसैं तुम देखति हौ किधौं नाहीं? हौं तोसौं कहौं प्यारे आँखि मूँदि रहौं, तौ लाल निकसि कहाँ जाहीं? मौकौं निकसिबे कौं ठौर बतावौ, साँची कहौ बलि जाहुँ लागौं पाँहीं। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-तुमहिं देख्यौ चाहत और सुख लागत काँहीं॥6॥ ....

इत-उत काहे कौं सिधारति, आंखिन आगैं ही तू आव।

इत-उत काहे कौं सिधारति, आंखिन आगैं ही तू आव। प्रीति कौ हितु हौं तौ तेरौ जानौ, ऐसौई राखि सुभाव। अमृत से बचन जिय की प्रकृति-सों मिलैं ऐसौई दै दाव। श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कहत री प्यारी, प्रीति को मंगल गाव॥5॥ ....

जोरी विचित्र बनाई री माई, काहू मन के हरन कौं।

जोरी विचित्र बनाई री माई, काहू मन के हरन कौं। चितवत दृष्टि टरत नहिं इत-उत, मन-बच-क्रम याही संग भरन कौं॥ ज्यौं घन-दामिनि संग रहत नित, बिछुरत नाहिंन और बरन कौं। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी न टरन कौं॥4॥ ....

ऐसैं ही देखत रहौं, जनम सुफ़ल करि मानौं।

ऐसैं ही देखत रहौं, जनम सुफ़ल करि मानौं। प्यारे की भाँवती, भाँवती जू के प्रान-प्यारे, जुगलकिसोरहिं जानौं॥ छिनु न टरौं, पल हौंहुँ न इत-उत, रहौं एक ही तानौं। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी मन-रानौं॥3॥ ....

आज रावल में धूम मचाई है

आज रावल में धूम मचाई है, कीर्ति ने आज लाली जायी है| श्री बरसाने में उजियारी छायी है, राधा-रानी को बधाई है बधाई है| श्यामा प्यारी कुञ्ज बिहारी, जय जय श्री हरिदास दुलारी|....

रुचि के प्रकास परस्पर खेलन लागे

रुचि के प्रकास परस्पर खेलन लागे। राग-रागिनी अलौकिक उपजत, नृत्य-संगीत अलग लाग लागे॥ राग ही में रंग रह्यौ, रंग के समुद्र में ये दोउ झागे। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी पै रंग रह्यौ, रस ही में पागे॥2॥ ....

माई री, सहज जोरी प्रगट भई

माई री, सहज जोरी प्रगट भई, जु रंग की गौर-स्याम घन-दामिनि जैसैं। प्रथम हूँ हुती, अब हूँ आगें हूँ रहिहै, न टरिहै तैसैं॥ अंग-अंग की उजराई-सुघराई-चतुराई-सुन्दरता ऐसैं। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी, सम वैस वैसैं॥1॥ ....

जय हो ब्रजराज की

जय हो ब्रजराज की बांसुरी की, ब्रजमोहन की बनवारी की जय जय। ललिता रंगदेवी विशाखा की, सुकुमारी श्री राधिका प्यारी की जय जय॥ नटनागर नित्यविहारी की जै, सुख सागर रास बिहारी की जय जय। जग भूषण कृष्ण मुरारी की जै, ब्रजभूषण बाँके बिहारी की जय जय॥....

Shubh Nav Samvatsar

नव संवत, नव चेतना, नव उमंग और संचार। बाँके बिहारी जी बरसा रहे भक्तों पर कृपा अपार॥....